अमीर ख़ुसरो

बहुत कठिन है डगर पनघट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निज़ाम पिया।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
ज़रा बोलो निज़ाम पिया।
पनिया भरन को मैं जो गई थी।
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी।
बहुत कठिन है डगर पनघट की।
खुसरो निज़ाम के बलि-बलि जाइए।
लाज राखे मेरे घूँघट पट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की।


ऐ री सखी मोरे पिया घर आए,
भाग लगे इस आँगन को।
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।


आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया,
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया,
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया।
वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो,
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
रंग सकल मोरे संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देख्यो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग।
देस-बिदेस में ढूँढ़ फिरी हूँ, देस-बिदेस में।
आहे, आहे आहे वा,
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही।
मेरे महबूब के घर रंग है री।


परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना।
बिर का दुख बहुत कठिन है प्रीतम अब आजावना।
इस पार जमुना उस पार गंगा बीच चंदन का पेड़ ना।
इस पेड़ ऊपर कागा बोले कागा का बचन सुहावना।


अपनी छबि बनाई के जो मैं पी के पास गई,
जब छबि देखी पी की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
बलि बलि जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
प्रेम भटी का मदवा पिलाय के,
मतवारी कर दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
गोरी गोरी बहियाँ हरी हरी चूरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
खुसरो निजाम के बलि-बलि जाइए
मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक....।