जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी।
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी॥
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी।
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी॥
पावस रितु बृन्दावन की दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है।
मन मोलै है, बागों में मोर सुहावणो बोलै है॥२॥
आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है।
रितु राजै है, स्याम की सुंदर मुरली बाजै है॥३॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारी जी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥
बौरसरी मधुपान छक्यौ,
मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ।
माधुरी कुंज सौं खाइ धका,
परि केतकि पाँडर कै उठि धायौ॥
सौनजुही मँडराय रह्यौ,
बिनु संग लिए मधुपावलि गायौ।
चंपहि चूरि गुलाबहिं गाहि,
समीर चमेलिहि चूँवति आयौ॥
जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै।
तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है॥
लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु।
परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है॥
गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ।
रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है॥
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु।
हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है॥
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ।
बरनीं न जाइ अवरन बै गई॥
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं।
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई॥
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव।
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई॥
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय।
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई॥