गुरु सक्सेना

लेटता था, उठता था, उठकर बैठता था,
बैठ कर सोचता था बुद्धि चकराई है।

बुद्धि चकराई नाही भांग तूने खाई,
नाही चिलम चढ़ाई नाही आँख ही लड़ाई है?

कर्ज की कढ़ाई नही किसी से लड़ाई,
नाही फिकर सताई नींद काहे नहीं आई है?

भोर हुई भाई बात उषा ने बताई
तूने खाट तो लगाई मच्छरदानी न लगाई है।